रोक दो मेरे ज़नाजे को,मेरी जान आ गयी है पिछे मुडकर देखो जरा, दारू की दुकान आ गयी है बोतल छुपा दो कफन मे मेरे, कब्र मे लेटा पिया करुँगा जब मांगेगा हिसाब खुदा तो, जाम बना कर दिया करुँगा.
बच्चन जी की पंक्तियां हैं - मैं कायस्थ कुलोद्भव, मेरे पुरखोंने इतना ढाला मेरे तन के लोहु में है, पचहत्तर प्रतिशत हाला पुश्तैनी अधिकार मुझे है मदिरालय के आँगन पर मेरे दादा परदादा के हाथ बिकी थी मधुशाला . * -तो कायस्थ- कुलोद्भव आशीष जी ,ख़ुदा नहीं चित्रगुप्त जी सब लिखे बैठे हैं ,और कब्र. अरे नहीं ,उस अँधेरी जगह को भूल जाइये अग्नि-रथ होता है हमारे आरोहण लिए. (कृपया अन्यथा न लें)
2 टिप्पणियां:
भईया मज़ेदार शायरी है। लिखते रहो।
बच्चन जी की पंक्तियां हैं -
मैं कायस्थ कुलोद्भव, मेरे पुरखोंने इतना ढाला
मेरे तन के लोहु में है, पचहत्तर प्रतिशत हाला पुश्तैनी अधिकार मुझे है मदिरालय के आँगन पर मेरे दादा परदादा के हाथ बिकी थी मधुशाला .
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-तो कायस्थ- कुलोद्भव आशीष जी ,ख़ुदा नहीं चित्रगुप्त जी सब लिखे बैठे हैं ,और कब्र. अरे नहीं ,उस अँधेरी जगह को भूल जाइये अग्नि-रथ होता है हमारे आरोहण लिए.
(कृपया अन्यथा न लें)
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